हिंदू धर्म में विवाह के फेरे लेते समय वर और वधू को सात वचन दिलाए जाते हैं. इसके बाद ही दो अजनबी लोग जीवनभर की यात्रा के साथी बन जाते हैं. जानिए ये वचन क्या हैं और इनका महत्व क्या है !
सातवा वचन:
आप पराई स्त्रियों कः मां समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के बीच अन्य किसी को भी नहीं आने देंगे। यदि आप यह वचन दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ ।
छठवां वचन:
यदि में कभी सहेलियों के साथ रहूं तो आप सबसे सामने कभी मेरा अपमान नहीं करेंगे। जुआ या किसी भी तरह की बुराइयां अपने आप से दूर रखेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आना- स्वीकार करती हूँ ।
पाँचवा वचन:
अपने घर के कार्यों में, विवाह आदि, लेन-देन और अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी राय लिया करेंगे तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।-
चौथा वचन:
अब हम विवाह आना स्वीकार करती हूँ । बंधन में बंध रहे हैं तो भविष्य में परिवार की रामी आवश्यकताओं की पूर्ति की जिम्मेदारी आपके कंधों पर है । अगर इसे स्वीकार करें तो में आपके वामांग में
तीसरा वचन:
आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ ।
दूसरा वचन:
आप अपने माता-पिता की तरह ही मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे और परिवार की मर्यादा का पालन करेंगे। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ ।
पहला वचन:
यदि आप कोई व्रत-उपवास, अन्य धार्मिक कार्य या तीर्थयात्रा पर जाएंगे तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाएं । यदि आप इसे स्वीकार करते हैं। तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं ।