धार्मिक पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने हर एक राशि के नाम पर एक संक्रांति आती है यानी कि 12 महीने, 12 राशि और 12 ही संक्रांति। सूर्य के एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं, हर वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे धनु संक्रांति कहा जाता है । हर संक्रांति का अपना महत्व होता है । सभी संक्रांति में धनु संक्रांति का विशेष महत्व होता है । संक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने, उनकी पूजा करने और पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष विधान है ।
इस साल २०२२ में , पौष माह की अष्टमी तिथि का शुभारंभ 15 दिसम्बर, दिन गुरुवार को रात के 1 बजकर 39 मिनट से होगा। इस संक्रांति का समापन 16 दिसंबर, दिन शुक्रवार को रात 3 बजकर 2 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, धनु संक्रांति 16 दिसंबर को ही मनाई जाएगी।
धनु संक्रांति का महत्व
1. सूर्य देव की पूजा करना अच्छा माना जाता है। धनु संक्रांति के दिन सूर्य देव को रोली, चावल मिला हुआ जल चढाने से व्यक्ति के जीवन और उसके व्यक्तित्व में तीव्र तेज का आगमन होता है।
2. सूर्य सभी राशियो में एक माह तक रहते हैं। सूर्य जिस दिन धनु राशि में सूर्यदेव गोचर करते हैं उस दिन से खरमास की शुरुआत हो जाती है, खरमास लगने के बाद मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार आदि नहीं किये जाते है क्यूंकि खरमास की अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
3. खरमास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा पाठ, मंत्र जाप करने से मानसिक शांति मिलती है। भगवान विष्णु की पूजा से घर में शुभता आती है, नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। भगवान सत्यनारायण की कथा करा सकते है इससे मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। उस घर में मां लक्ष्मी के आठों भव्य रूप निवास करते हैं।
4. धनु संक्रांति पौष माह में आती है और पौष का महीना और संक्रांति दोनों सूर्य को समर्पित है। ऐसे में धनु संक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। व्यक्ति के स्वभाव में निर्भीकता आती है और उसके कष्टों का निवारण भी स्वतः ही होने लग जाता है।