जितिया व्रत का धार्मिक महत्व
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में मनाये जाने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। ये व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन माना जाता है, इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से भारत में बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश तथा नेपाल में किया जाता है।
इस व्रत का नाम गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन के नाम पर रखा गया है। इस पर्व को जीवित्पुत्रिका, जिउतपुत्रिका, जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं पुत्र प्राप्ति, संतान के दीर्घायु होने एवं उनकी सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए करती हैं। इस व्रत को करने से संतान के जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 17 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 14 मिनट पर होगी और 18 सितंबर दोपहर 4 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। उदया तिथि के अनुसार, जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा। 19 सितंबर की सुबह 6 बजकर 10 मिनट के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।
जितिया व्रत का धार्मिक महत्व
इस व्रत को करने के लिए एक पौराणिक मान्यता है जिसके के अनुसार महाभारत काल में जब गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु हो जाती है तो अश्वत्थामा ने बदले की भावना लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को ब्रह्मास्त्र से नष्ट कर दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से प्राण दिया। जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के शिशु को गर्भ में जीवित किया, और उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा। वह दिन आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी थी, तब से संतान की लंबी आयु की कामना लिए जीवित्पुत्रिका रखा जाने लगा। जो महिलाएं इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखती हैं, उनके बच्चों पर भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा होती है। इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु, निरोगी और सुखी जीवन जीता है।
जितिया व्रत की पूजा विधि
संतान के दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाने वाला जितिया व्रत काफी कठिन माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने संतान के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इस व्रत की पूजा तीन दिनों में संपन्न होती है, व्रत की शुरुआत आश्विन मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी वाले दिन से होती है, इस दिन महिला सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाती हैं इसके बाद अष्टमी के दिन विधि-विधान से निर्जला व्रत रखने के बाद नवमी तिथि वाले दिन व्रत का पारण किया जाता है।