आषाढ़ संक्रांति में सूर्य मिथुन राशि में प्रेवश करेंगे. ल समय में दान-धर्म,कर्म के कार्य किये जाते हैं। आषाढ़ संक्रान्ति 15 जून 2023 को मनाई जाएगी। संक्रांति पुण्य काजिनसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
आषाढ संक्रांति के दिन किया गया दान अन्य शुभ दिनों की तुलना में दस गुना अधिक पुण्य देने वाला होता है। धर्म शास्त्रों में इस दिन देव उपासना व साधना का विशेष महत्व बताया गया है। संक्रांति की पुण्य योग से इस शुभ तत्वों की प्राप्ती संभव है।
आषाढ़ मास का त्योहार
आषाढ़ मास में रथ यात्रा प्रमुख त्योहारों में से एक है जो भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जो हर साल पुरी और अन्य स्थानों पर आयोजित किया जाता है। गुरु पूर्णिमा, गुरु को समर्पित एक त्योहार आषाढ़ मास में मनाया जाता है। इससे पहले शयनी एकादशी, शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें चंद्र दिवस (एकादशी) को मनाई जाती है।
आषाढ़ मास का महत्व
हिंदू धर्म में आषाढ़ के महीने का बहुत महत्व होता है। इस दौरान मंगल और सूर्य की पूजा करना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस महीने में मंगल की पूजा करने से कुंडली में बैठा मंगल अशुभ प्रभाव के बजाय शुभ प्रभाव देने लगता है।
भारत में यह महीना मनसून का मौसम होता है। कुछ नकारात्मक धारणाओं के कारण आषाढ़ मास को अशुभ मास के रूप में मान्यता प्राप्त है। मान्यता है कि आषाढ़ मास गृहप्रवेश, जनेऊ संस्कार, विवाह आदि शुभ कार्य करने के लिए अशुभ होता है।
आषाढ संक्रांति पूजा विधि
आषाढ संक्रांति व्रत का पालन, पूजन, पाठ, दानादि का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है।
सूर्य नारायण भगवान का षोडशोपचार पूजन के साथ आहवान करना चाहिए। ऐसा करने से संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है। सुख-संपत्ति, आरोग्य, बल, तेज, ज्ञानादि की प्राप्ति होती है।
आषाढ संक्रान्ति, के दिन तीर्थस्नान, जप-पाठ, दान आदि का विशेष महत्व रहता है। संक्रान्ति, पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण तीनों ही समय में यथा शक्ति दान कार्य करने चाहिए।
आषाढ मास में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिये ब्रह्मचारी रहते हुए नित्यप्रति भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्जना करना पुण्य फल देता है।