गणपति की पूजा सभी प्रकार के विध्नों को समाप्त कर देने वाली मानी जाती है इसी कारण गणपति जी प्रथम पूज्य के रुप में पूजनीय देवता हैं. गणेश उत्सव के दौरान अनेक प्रकार से गणपति की पूजा उपासना की जाती है. गणेश पूजा में तुलसी का होना शुभ नहीं माना जाता है. धर्म कथाओं एवं पुराणों में बताया गया है कि भगवान विष्णु, राम और कृष्ण को तुलसी जी अर्पित करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और प्रसाद स्वीकार करते हैं. लेकिन भगवान गणेश को भोग लगाने में तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है. भगवान गणेश को तुलसी चढ़ाने से भगवान नाराज हो जाते हैं. आखिर इसके पीछे क्या कारण हो सकता है आइये जानते हैं इसका रहस्य.
भगवान को इस कारण नहीं अर्पित करते हैं तुलसी
भगवान गणेश को तुलसी क्यों अप्रित नहीं की जाती है इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. पुराणों में बताया गया है कि एक बार भगवान गणेश गंगा नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे. इसी दौरान धर्मात्मज की पुत्री तुलसी विवाह की इच्छा से तीर्थयात्रा पर निकलीं. देवी तुलसी सभी तीर्थ स्थानों का भ्रमण करते हुए गंगा तट पर पहुंचीं. गंगा तट पर देवी तुलसी ने देखा कि युवा गणेशजी तपस्या में लीन हैं. शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश तपस्या में लीन होकर रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे. उनके शरीर के सभी अंगों पर चंदन लगा हुआ था. उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ-साथ सोने और बहुमूल्य रत्नों के अनेक हार थे. उसकी कमर पर एक अत्यंत मुलायम रेशमी दुपट्टा लिपटा हुआ था.
तुलसी भगवान गणेश के इस सुंदर रूप पर मोहित हो गईं. उनके मन में गणेश जी से विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुई. तुलसी ने विवाह की इच्छा से उन्हें विचलित कर दिया. तब भगवान श्रीगणेश ने तुलसी द्वारा अपनी तपस्या भंग करना अशुभ माना और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उनके विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
विवाह प्रस्ताव अस्वीकार करने पर तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेशजी को श्राप दिया कि उनके एक नहीं बल्कि दो विवाह होंगे. इस पर श्रीगणेश ने भी तुलसी को श्राप दिया कि उसका विवाह एक राक्षस से होगा. तब से गणेश जी के पूजन में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है तभी से भगवान श्रीगणेश की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना जाता है.