शबरी का परिचय
बात उस समय की है, जब भगवान श्री राम का जन्म भी नहीं हुआ था। भील जाती के एक कबीले जिसके राजा अज थे। अज के घर में एक कन्या का जन्म हुआ था। जिसका नाम श्रमणा था।शबरी का दूसरा नाम श्रमणा है।
शबरी कौन थी : शबर जाती की भी कन्या जिसको शबरी भी कहा जाता है। शबरी की माता का नाम इन्दुमती और शबरी के पिता का नाम अज था। उनके माता-पिता की एक ही संतान थी।
शबरी बचपन से ही पक्षियों से अलौकिक बातें किया करती थी, जो सभी को आश्चर्य की बात लग रही थी। शबरी जैसे जैसे बड़ी होती गई वैसे उनकी हरकते उनके माता-पिता की समज से बहार थी।
शबरी कौन सी जाति की थी
शबरी माता का असली नाम श्रमणा है। शबर जाति के भील कन्या जिसको शबरी भी कहा जाता है। इनके पिता भिलो के मुखिया थे, उन्होंने अपना विवाह भील कुमार से तय किया था।
शबरी का जन्म स्थान
माता शबरी का जन्म स्थान सापुतारा से 60 किलोमीटर जितनी दुरी पर सुबीर गांव के पास स्थित गई। मान्यता के अनुसार यह जगाव वही है जहा राम शबरी मिलन हुआ था।
शबरी कहां रहती थी और उनका जीवन कैसे व्यतीत होता था
शबरी कहां रहती थी साथ ही उनका जीवन कैसे व्यतीत होता था ये छोटी सी कहानी के द्वारा शबरी का जीवन परिचय करते है।
शबरी को उनके विवाह में पशुओं की बलि देने से बचाने के लिए वह रात्रि को भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहोच गई।
शबरी को छोटी जाती की वजह से कई ऋषियों ने उसे भगा दिया था उनको किसीने दीक्षा नहीं दी थी। बादमें कुछ समय बाद वह मतंग ऋषि के आश्रम पहोची और उन्होंने दीक्षा देने के लिए प्राथना की, तब मतंग ऋषि ने शबरी को अपने गुरुकुल में रहने की अनुमति दी। माता शबरी का आश्रम मातंग ऋषि के पास ही में था।
शबरी ने भी मतंग ऋषि की बहोत सेवा करती थी और मतंग ऋषि और शबरी गुरुकुल में रहकर उसकी देख-रेख का कार्य करते थे । शबरी के काम से खुश होकर मतंग ऋषि ने अपनी बेटी मान लिया था। समय के साथ मतंग ऋषि का शरीर भी बूढ़ा हो गया था। एक दिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने पास बुलाया और कहा की,’बेटा में अपना देह त्याग रहा हूँ बहुत साल हो गई इस शरीर में रहते-रहते।’
शबरी ने कहा में अकेले जी के क्या करुँगी इसीलिए में भी अपना देहत्याग दूगी। तब मतंग ऋषि ने कहा एकदिन तुम्हारे पास राम आएंगे वही तुम्हे मोक्ष देंगे। इसी तरह मतंग ऋषि ने अपना देह त्याग दिया।
उसी दिन से शबरी हररोज भगवान राम की राह देखती थी और भक्ति करती थी। अपनी कुटिया के बहार रोज श्रीराम के आने की राह देखती थी।
शबरी का विवाह हुआ था या नहीं
शबरी का विवाह हुआ था या नहीं : शबरी की माता-पिता ने एक ब्राह्मण से कहा की शबरी वैराग्य की बाते करती रहती है। ब्राह्मण ने सलाह दी की इसका विवाह करवा दो। उनके पिता अज ने शबरी का विवाह एक भील कुमार से तय किया। राजा अज और इन्दुमती ने विवाह की तैयारियां शुरु कर दी।
राजा अज और इंदुमती ने शबरी के विवाह के लिए पशु पक्षियों को जमा कर दिए। फिर जब इंदुमती शबरी के बाल बना रही थी तब शबरी ने अपनी माँ से पूछा हमारे बाड़े में इतने पशु-पक्षी क्यों है?
तब माता इन्दुमती ने बताया ये सब तुम्हारे विवाह के लिए है। तुम्हारे विवाह में मेहमानो के लिए बहोत बड़ा भोज तैयार किया जायेगा। शबरी को यह बात अच्छी नहीं लगी। राजकुमारी नेकदिल और दयालु स्वभाव की थी।
इसी लिए शबरी ने कहा मेरे विवाह के लिए में इतने सारे जीवो की बलि नहीं दूगी, अगर मेरे विवाह से इतने जीवो की बलि दी जाएगी तो म ये विवाह नहीं करुँगी।
उसने सोचा ये कैसा विवाह जिसमे इतने पशुओ की बलि दी जाएगी इससे तो विवाह न करना ही अच्छा है। यही सोचकर वह अपनी शादी के एक दिन पहले रात्रि में उठकर जंगल में भाग गयी।
यही सोच में जानवरो को रखी गई जगह पर शबरी पहुंची। उसने सोचा की उन्हें खोल देती हूँ, लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई। उसके बाद रात में वह जंगल की तरफ भागने लगी।
शबरी का आश्रम कहां है
शबरी की कथा : शबरी को विवाह नहीं करना था इसीलिए वह जंगल की तरफ भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पहुंच गई। वह कई ऋषिमुनि रहा करते थे। शबरी को लगा की वो भी इसी जंगल में किसी तरह ऋषिमुनियों की सेवा करके अपना जीवन व्यतीत करेगी।
शबरी उसी जंगल के एक हिस्से में किसी तरह रहने लगी। शबरी रोजाना सुबह जल्दी उठकर ऋषिमुनियों की झोपड़ी के आगे झाड़ू लगाती और हवन के लिए लकडिया भी लेकर रख देती थी।
ऋषि-मुनियो को सोचने लग गई की जंगल में उनके काम अपने आप कैसे हो रहे है। कई दिनों तक ऐसा चलता रहा लेकिन एक दिन शबरी को ऋषि ने देख लिया। उसे देखते ही उसका परिचय पुछा।
शबरी ने उसका परिचय बताते हुए कहा की, वह भील जाती के राजा अज और इन्दुमती की पुत्री है। जैसे ही शबरी ने बताया की वह भील आदिवासी परिवार से संबध रखती है, तो ऋषियों को बहोत क्रोधित हो गये और शबरी को भलाबुरा कहा।
शबरी को बिलकुल पता नहीं था की उसकी जाती छोटी है और उसे ऋषियों द्वारा जाती की वजह से अपमान सहन करना पड़ेगा। इतना कुछ सुनने के बाद भी शबरी ऋषियो के आश्रम पहुंचकर झाड़ू लगाकर गुरुदीक्षा लेना चाहती थी। लेकिन सभी ऋषि शबरी को उनकी जाती की वजह से अपमान कर के भगा देते थे।
कुछ समय बाद वह मतंग ऋषि की कुटिया में पहोची। शबरी ने मतंग ऋषि को बताया वह उनसे गुरु दीक्षा लेना चाहती है। मतंग ऋषि ने अपने गुरुकुल में रहने की अनुमति दी और भगवान से जुड़ा ज्ञान देते थे।
शबरी ने भी मतंग ऋषि की बहोत सेवा करती थी और वह गुरुकुल के सारे काम करती थी। शबरी के काम से खुश होकर मतंग ऋषि ने अपनी बेटी मान लिया था। समय के साथ मतंग ऋषि का शरीर भी बूढ़ा हो गया था। एक दिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने पास बुलाया और कहा की,’बेटा में अपना देह त्याग रहा हूँ बहुत साल हो गई इस शरीर में रहते-रहते।’
मतंग ऋषि ने कहा, ‘बेटी तुम्हे चिंता करने की जरुरत नहीं है। राम तुम्हारी चिंता करेंगे और ध्यान भी रखेंगे।’और उन्होंने कहा राम खुद तुम्हे खोजते हुई इस कुटिया में आएंगे और तुम्हे उनके हाथो ही मोक्ष मिलेगा।
शबरी ने राम से क्या कहा और शबरी और राम का मिलन
त्रिलोक के विजेता रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था। तब राम अपनी प्यारी पत्नी को खोजने भाई लक्ष्मण के साथ जा रहे थे, तब उनकी मुलाकात शबरी से हुई थी। जिन्होंने उनकी दयालुता के बारें में सुना था। और शबरी रामभक्त थी।
शबरी हररोज सुबह जल्दी उठकर जंगल में से ताज़ा फूलो को तोड़कर आती थी। अपनी झोपड़ी के आगे ताज़े फूलो रास्ते में बिछाती थी, और कुछ फूलो की भगवान राम को पहनाने के लिए मालाएं करती थी। वह ये कार्य हररोज करती थी।
राम शबरी मिलन : शबरी हररोज भगवान की राह देखती थी जिससे शबरी और राम जी का मिलन हो और कहती थी मरे राम आयेगे। शबरी ने अपना जीवन श्रीराम के दर्शन की इच्छा में बिताया था। एक दिन ऐसा आया जब सीता की खोज में निकले राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में पधारे और शबरी ने फूलों से उनका स्वागत किया और शबरी की राम जी से मुलाकात हो गई।
शबरी बहोत गरीब थी। इसीलिए उनके पास दोनों भाइयो को बैर खिलाने के अलावा कुछ नहीं था। शबरी ने सारे बैर चखा जो बैर मीठे थे वही राम को खिलाये क्योकि राम को कोई बैर खट्टे न लगे इसीलिए शबरी ने सारे बैर चखे और बाद में राम को खिलाये।
झूठे शबरी के बेर श्री लक्ष्मण जी को नहीं अच्छे लगे। इसी लिए उन्होंने कोई देखे नहीं वैसे अपने पास रख दिए थे।
शबरी और राम का संवाद बहुत देर तक चला। शबरीने श्री रामको मीठे बेर भी खिलाए। उनके प्रेम भरे आगमन से भगवान श्री राम बहुत ही प्रसन हुए।
शबरी पूर्व जन्म में कौन थी
शबरी पूर्व जन्म में एक परमहिसी नाम की रानी थी। एक बार कुम्भ के मेले में परमहिसी रानी और राजा दोनों साथ में गये थे। राजा का वह पर शिविर था। रानी ने एक दिन अपनी खिड़की से ऋषियों का समूह देखा, वह हवन कर रहे थे और मंत्रो का उच्चारण कर रहे थे उसको देखकर रानी का मन वह बैठने का कर रहा था।
रानी ने वह जाने की राजा से अनुमति मांगी लेकिन राजा ने इनकार कर दिया और कहा रानी आप ऋषियों के बिच बैठने नहीं जा सकती यह आपको शोभा नहीं देता। यह सुनकर रानी अपने कक्ष में जाकर उदास होकर रोने लगी।
रानी रात में राजा से बिना बताये अपने कक्ष से निकल कर त्रिवेणी तट पर पहोची और वहाँ गंगा माँ से प्राथना करने लगी।
रानी ने याचना करते हुई कहा की, हे माते, अगर मुझे दूसरा जन्म मिले तो, रुपवान और रानी मत बनाना। अब में आपमें समाना चाहती हूँ। इतना कहकर परमहिसी जल में समाधि ले ली और देहत्याग दिया। इसी कारण अगले जन्म में शबरी रुपवान नहीं थी, और कोई रानी भी नहीं थी।