
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। यह पर्व मथुरा समेत पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना की जाती है और 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से सभी दुख दूर होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
गोवर्धन पूजा कथा
गोवर्धन पर्वत का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रदेव को अभिमान हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने उनका घमंड तोड़ने के लिए लीला रची। एक दिन ब्रजवासी पूजा और भोग की तैयारी कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि वे किसकी पूजा कर रहे हैं। माता ने बताया कि इंद्रदेव की पूजा, क्योंकि उनकी वर्षा से फसल अच्छी होती है। श्रीकृष्ण ने कहा कि वर्षा करना इंद्र का कर्तव्य है, पूजा गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए।
तभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे क्रोधित होकर इंद्रदेव ने भारी वर्षा कर दी। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और ब्रजवासियों को सुरक्षित किया। इस घटना के बाद से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
शुभ मुहूर्त:
प्रात:काल मुहूर्त (सुबह): 06:26 AM से 08:42 AM तक
सायं काल मुहूर्त (शाम): 03:29 PM से 05:44 PM तक
यह समय विशेष रूप से पूजा के लिए शुभ माना जाता है। इन समयों में पूजा करने से अधिकतम पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुजा विधि:
गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाना: गोवर्धन पर्वत की आकृति गाय के गोबर से बनाएं।
भगवान श्री कृष्ण की पूजा: पारंपरिक विधि से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें।
अन्नकूट का आयोजन: भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग अर्पित करें।
गायों की पूजा: गायों को अच्छे से स्नान कराकर उन्हें सजाएं और उन्हें गुड़, चारा आदि खिलाएं।
धन्यवाद ज्ञापन: प्राकृतिक संसाधनों और गायों के प्रति आभार व्यक्त करें।
महत्व:
गोवर्धन पूजा हमें यह संदेश देती है कि हमें प्रकृति और उसके संसाधनों का सम्मान करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति और श्रद्धा से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती।
इस दिन की पूजा से घर में सुख-समृद्धि, शांति और समृद्धि का वास होता है। साथ ही, यह पर्व भाईचारे और एकता का प्रतीक भी है।
निष्कर्ष:
गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जो हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार का पाठ पढ़ाता है। इस दिन की पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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