होली के त्यौहार का प्राचीन इतिहास
हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर था। उसकी एक बहन होलिका थी। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रह्लाद था। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोधी था। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति करने से बहुत रोका। लेकिन प्रह्लाद ने उनकी एक भी बात नहीं सुनी। इससे नाराज़ होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का प्रयास किया। इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। उसके बाद होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई लेकिन जिस पर विष्णु की कृपा हो उसे क्या हो सकता है और प्रह्लाद आग में सुरक्षित बचे रहे जबकि होलिका उस आग में जल कर भस्म हो गई।
होली के उत्सव तरीके
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं।
इसी तरह मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली मनाते हैं। कुमाऊँ की गीत बैठकी होती है जिसमें शास्त्रीय संगीत गोष्ठियाँ होती हैं। होली के कई दिनों पहले यह सब शुरू हो जाता है।
विभिन्न देशों में बसे हुए प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग तरीके से होली के शृंगार व उत्सव मनाया जाता है।
होली का महत्व
बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रतीक होली का सामाजिक महत्व भी है। यह एक ऐसा पर्व होता है जब लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं। अगर इस दिन अगर किसी को लाल रंग का गुलाल लगाया जाए तो सभी तरह के मतभेद दूर हो जाते हैं। क्योंकि लाल रंग प्यार और सौहार्द का प्रतीक होता है।
होली तिथि
होलिका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाता है. इस बार होलिका दहन 28 मार्च शनिवार के दिन होगा उसके अगले दिन होली खेली जाएगी. 22 मार्च से होलाष्टक लग जाएगा. पंडित राममेहर शर्मा जी कहते है कि होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है.