भारत में मनाये जाने वाले हर त्यौहार का अपना ही महत्व होता है और भारत के लोग हर त्यौहार को उत्साह से मानते हैI लोहड़ी पर्व, मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है। यह पर्व खुशहाली के आगमन का प्रतीक भी है। साल के पहले मास जनवरी में जब यह पर्व मनाया जाता है उस समय सर्दी का मौसम जाने को होता है।
यह पंजाबियों के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। इस पर्व की धूम उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ज्यादा होती है अब तो लोहड़ी की धूम सिर्फ पंजाब या भारत में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में हर जगह दिखाई देती है।
धार्मिक महत्व
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायन होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।
इस पर्व के मनाये जाने के पीछे एक प्रचलित कथा है कि मकर संक्रांति के दिन कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में कृष्ण को मारने के लिए भेजा था, जिसे कृष्ण ने ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है।
त्योहार मनाने का तरीका
लोहड़ी के दिन जहां शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाती है। मूंगफली, तिल के लड्डू, रेवड़ी के अलावा तरह तरह की गजक यह सभी सामग्री प्रसाद के रूप में रात को अलाव में डाली जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। आग में इस सामग्री को डाल कर ईश्वर से धनधान्य से भरपूर होने का आशीर्वाद मांगा जाता है। वहां सभी उपस्थित लोगों को यही चीजें प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं। इसके साथ ही पंजाबी समुदाय में घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से 2-4 दहकते कोयले भी प्रसाद के रूप में घर लाने की प्रथा आज भी जारी है।
यह उत्सव शाम होते ही ढोल की थाप के साथ पंजाबी नृत्य गिद्दा शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता ही रहता है। वहीं अगले दिन प्रात: मकर संक्रांति का स्नान करने के बाद उस आग से हाथ सेंकते हुए लोग अपने घरों को आती है।