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पापंकुशा एकादशी

By October 3, 2022 Blog

पापंकुशा एकादशी

एकादशी व्रत का अपना ही महत्त्व है। सदियों से एकादशी व्रत को मोक्ष प्राप्त करने वाला माना गया है। सभी एकादशियॉ में पापांकुश एकादशी का अपना ही महत्त्व है। भगवान विष्णु का ध्यान-स्मरण किसी भी रूप में सुखदायक और पापनाशक है, परंतु पापांकुशा एकादशी के दिन व्रत और प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन कर देता है और स्वर्ग का रास्ता खुलता है। पापांकुश एकादशी के व्रत का फल हजारों अश्व्मेव यज्ञ और सैकड़ो सूर्य यज्ञ करने के भी ऊपर है , कहा जाता है कोई भी व्रत इस व्रत के आगे सर्वोच्च नहीं है. जो कोई इस व्रत के दौरान रात्रि को जागरण करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, इस व्रत का फल उस व्रती के आने वाली 10 पीढियों को भी मिलता जाता है। जो पापांकुशा एकादशी व्रत रखता है, उसे उत्तम सेहत का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तिथि और शुभ समय
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष के ग्यारवें दिन पापांकुश एकादशी मनाई जाती है। ये सितम्बर-अक्टूबर के समय आती है। इस बार 2022 में यह 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 05 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12:00 बजे से हो रहा है। इस तिथि का समापन अगले दिन 06 अक्टूबर गुरुवार को सुबह 09 बजकर 40 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि को देखने से पापांकुशा एकादशी व्रत 06 अक्टूबर को रखा जाएगा.
पारण
इस व्रत को तोड़ने की रीती को ‘पारण’ कहते है। पारण को एकादशी के दुसरे दिन द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए। पारण को द्वादशी के ख़त्म होने से पहले जरुर कर लेना चाहिए। अगर पारण द्वादशी के दिन पूरा नहीं किया जाता है, तो व्रत पूरा नहीं माना जाता है।
पारण को हरी वासरा के समय नहीं करना चाहिए। हरी वासरा द्वादशी तिथि का पहला एक चौथाई भाग होता है। हरी वासरा के ख़त्म होने के बाद ही व्रत पारण करना चाहिए। व्रत पारण के लिए सबसे अच्छा समय प्रातःकाल का होता है। मध्यान्ह में व्रत नहीं तोडना चाहिए, ध्यान रहे द्वादशी ख़त्म होने पहले पारण कर लें।
व्रत की विधि
यह व्रत दशमी तिथि की शाम से शुरू होकर, द्वादशी सुबह तक का होता है। इस दौरान कुछ नहीं खाया जाता है। दशमी के दिन एक समय सूर्यास्त होने से पहले सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, फिर इस व्रत को अगले दिन एकादशी समाप्त होने तक रखा जाता है। दशमी के दिन गेंहूँ, उरद, मूंग, चना, जौ, चावल एवं मसूर का सेवन नहीं करना चाहिए, आप केवल फलाहार कर सकते है ।
इस एकादशी के दिन भक्त लोग कठिन उपवास रखते है,मनुष्य को पापों से बचने का दृढ़-संकल्प करना चाहिए। कई लोग मौन व्रत भी रखते है. जो इस व्रत को रखते है, वे जल्दी उठकर नहा धोकर साफ कपड़े पहनते है। फिर एक कलश की स्थापना कर उसके पास विष्णु की तस्वीर की स्थापना करके विधिवत पूजन सामग्री चढ़ा कर व्रत का संकल्प करे और व्रत की कथा पढ़े। इस व्रत के दौरान, सांसारिक बातों से दूर रहना चाहिए, वाणी पर संयम रखे। ब्राह्मणो, गरीबों एवं जरूरतमंदों को भोजन और दान आदि देकर व्रत को पूर्ण करे।

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