कात्यायनी माता दुर्गा के नौ रूपों में छठे स्वरूप के रूप में पूज्य हैं। माता ने यह रूप अपने भक्त ऋषि कात्यायन के लिए धारण किया था। देवी भागवत पुराण में ऐसी कथा मिलती है कि, ऋषि कात्यायन मां आदिशक्ति के परम भक्त थे। इनकी इच्छा थी कि देवी उनकी पुत्री के रूप में उनके घर पधारें। इसके लिए ऋषि कात्यायन ने वर्षों कठोर तपस्या की।
देवी कात्यायनी की पूजा
देवी कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है। ब्रजभूमि की कन्याओं ने श्रीकृष्ण के प्रेम को पाने के लिए इनकी आराधना की थी। भगवान श्रीकृष्ण ने भी देवी कात्यायनी की पूजा की थी। देवी कात्यायनी को मधुयुक्त पान अत्यंत प्रिय है। इन्हें प्रसाद रूप में फल और मिठाई के साथ शहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए।
देवी कात्यायनी का स्वरूप
माता कात्यायनी चार भुजाधारी हैं जिनमें इनके एक भुजा में शत्रुओं का अंत करने वाला तलवार है तो दूसरी भुजा में पुष्प है जो भक्तों के प्रति इनके स्नेह को दर्शाता है। तीसरी भुजा अभय मुद्रा में है जो भक्तों को भय मुक्ति प्रदान कर रहा है। चौथी भुजा देवी का वर मुद्रा में है जो भक्तों को उनकी भक्ति का वरदान देने के लिए है।
देवी कात्यायनी की पूजा का मंत्र और लाभ
माता का प्रभाव कुंडलिनी चक्र के आज्ञा चक्र पर है। नवग्रहों में माता कात्यायनी शुक्र को नियंत्रित करती हैं। इनकी साधना और भक्ति से वैवाहिक जीवन के सुख की प्राप्ति होती है। जिनके विवाह में बाधा आ रही हो उनके विवाह की बाधा माता कात्यायनी दूर करती हैं। ‘चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनी॥‘ इस मंत्र से देवी का ध्यान करके नवरात्र के छठे दिन देवी की पूजा करनी चाहिए।